Wednesday, April 19, 2017

तुम उदास करते हो कवि...

पहले उसे मैं औसत लगा
फिर बेहतर
उसके बाद थोडा और बेहतर
मैं बेहतरी में आगे बढ़ ही रहा था कि
अचानक उसने कहा एक दिन
तुम कोई ख़ास पसंद नही हो मुझे
बल्कि कभी-कभी लगते हो बेहद इरिटेटिंग भी
मुझे अपनी घटती लोकप्रियता का दुःख नही था
मुझे दुःख इस बात का हुआ  
मैं सतत मूल्यांकन में था.
****
हमारी कुछ ही संयुक्त स्मृतियाँ ऐसी थी
जिनका एक सामूहिक अनुवाद संभव था
अन्यथा
हम चल रहे थे आगे-पीछे अपने अपने हिसाब से
जिस दिन हम अलग हुए चलते -चलते
उस दिन हमारे पास कुछ ऐसी स्मृतियाँ बची थी
जिन्हें बांचते समय लगता कि
हम साथ चल नही साथ बह रहे थे
किनारों से पूछने कोई नही जाएगा
मगर ठीक से वही बता सकता है
हम दोनों की अभौतिक दूरी.
***
ऐसा कई बार हुआ
उसे फोन किया और स्क्रीन पर नम्बर दिखने के बाद
काट दिया तुरंत
ठीक इसी तरह कुछ एसएमएस किए टाइप
और मिटा दिए तुरंत
ये घटनाएं मेरे द्वन्द, संकोच  या अनिच्छा को नही बताती है
ये दोनों बातें बताती है
समय से चूक जाने के बाद
तुम्हें किसी भी वक्त डिस्टर्ब करने का हक़ खो  बैठा था मैं.
***
हमारी बातें इतनी निजी है
जितनी धरती की अंदरूनी दुनिया
हमारी बातें इतनी सार्वजनिक है
जितना आसमान का फलक
हमारी बातों में थोड़ी थोड़ी
सबकी बातें शामिल है
इसलिए जब उदास होता हूँ मैं तो
कभी कभी
सुबक कर रो पड़ता है कोई अनजाना भी.
***
‘तुम उदास करते हो कवि’
किसी ने कहा ने एकदिन
कोई कविता पढ़ने के बाद
मैने जवाब में एक मुस्कान बना दी
यह सच है कि प्राय: लोगो को उदास करता हूँ मैं
क्यों करता हूँ
इसका सही-सही जवाब केवल तुम्हारे पास है
मगर तुमने कोई पूछने नही जाएगा
इसलिए मुस्कान मेरे पास
स्थाई प्रतीक है
अपना दोष स्वीकारने का.

© डॉ. अजित






2 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20 - 04 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2621 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Onkar said...

बहुत बढ़िया