Sunday, June 25, 2017

मोक्ष

मैं भूल गया उन लोगों को
जिनसे मैनें दुःख में पूछा था हालचाल
मेरे पास उनकी अस्थाई समस्या के
स्थाई समाधान नही थे
फिर भी मैनें दार्शनिक होकर कहा
बुरा वक्त है बीत जाएगा

जबकि जानता था मैं
वक्त न बुरा होता है और न अच्छा

मुझे याद है वे लोग
जो अपनी खुशी में करना चाह रहे थे
मुझे शामिल
मैनें झूठे उत्साह के साथ उन्हें दी
बधाई और शुभकामना एक साथ
इन दो शब्दों से उन्होंने मुझे शामिल समझा
और इन्ही दो शब्दों से मैंने खुद को अनुपस्थित

दोनों किस्म के लोग
पीछा करते है मेरा रोज़ सपनों में
वे मुझसे कुछ कहते नही
बस कभी टांग देते है मुझे किसी मचान पर
तो कभी फेंक देते पहाड़ की ऊंचाई से
दोनों की स्थितियों में
मुझे डर नही लगता है
और न ही मैं होता हूँ चोटिल

जिन्हें मैं भूल गया
या जो मुझे याद रह गए
वे न मेरे मित्र है और न शत्रु
फिर भी
वो मुझसे पूछते रहते है
एक ही बात बारम्बार
'तुम्हारा नम्बर कब आएगा'

जब तक मैं समझ पाता हूँ उनका सवाल
और जवाब देना चाहता हूँ
वे एक साथ हंसने और रोने लगते है
उस कोलाहल में दब जाता है
मेरा जवाब

फिर मैं याद करता हूँ उन लोगों को
जो न मुझे याद है
और न ही जिन्हें भूला हूँ मैं

वे हाथ पकड़कर ले जाते है मेरा
और छोड़ आते है उस एकांत में
जहां रोटी और पानी की नही
प्रेम की बातें जिंदा रखती है मुझे

मैं मुद्दत से रोटी और पानी को भूल गया हूँ
प्रेम भी मुझे कोई खास याद नही है
मुझे केवल प्रेम की कुछ बातें याद हैं

जिन्हें सुनकर और पढ़कर
दुनिया कर देती है मुझे माफ़
फिलहाल मेरी मोक्ष में
इसलिए भी दिलचस्पी नही है
क्योंकि
माफीयाफ्ता शख्स के लिए
जीना जरूरी होता है।

©डॉ. अजित