Wednesday, October 4, 2017

पिता का फोन

मेरे पिता के पास था
ड्यूल सिम एंड्राइड मोबाइल
नई तकनीकी से नही था
उन्हें किसी किस्म कोई डर
अलबत्ता,वो नई चीजों को सीखने के लिए
रहते थे हमेशा उत्साहित और तत्पर
स्क्रीन टच फोन को प्रयोग करना सीखा था
उन्होंने बेहद तेज गति से
यदि अब वो होते तो
निसंदेह व्हाटस एप्प पर होते
मेरे से अधिक सक्रिय

उनके मरने पर मैं इस कदर डर गया
दाह संस्कार के बाद तुरन्त निकाले
दोनों सिम उनके मोबाइल से
मुझे लगा यदि कोई उनका परिचित करेगा फोन
कैसे बताऊंगा मैं हर बार एक ही बात
अब नही रहे पिताजी
अब बचा है केवल उनका सेलफोन

पिताजी की अंग्रेजी थी कामचलाऊ
उनकी फोनबुक की थी अपनी एक
मौलिक भाषा
भले ऐसी भाषा पर नही करेगा कभी
कोई भाषावैज्ञानिक शोध
मगर उन्हें रहते थे याद सब नाम
अपनी कूटभाषा मे
किसी कुशल गुप्तचर की तरह

पिता के मरने पर
मर गया उनके संपर्कों का
एक जीवंत संचार-संसार
शेष बचे रह गए
कंपनियों के प्रमोशनल एसएमएस
और उनकी पसंदीदा गानों का
एक अदद माइक्रो एसडी कार्ड
जो आज भी किसी दैवीय यंत्र की तरह
पड़ा है मेरे पर्स में

उनके मरने पर
उनके फोन ने घोषित किया होगा
मुझे बेहद मतलबी पुत्र
उनका फोन बंटा हमारे मध्य
किसी पैतृक सम्पत्ति की तरह
मगर एकदिन वो भी
पिता की तरह हो गया मृत
मशीन की यह अभी तक ज्ञात
सबसे श्रेष्ठ स्वामी भक्ति लगी मुझे

पिता का फोन बंद करने की
मेरी सारी वजह मनोवैज्ञानिक थी
पिता बन गए थे भूत
और
मैं भाग रहा था पिता के अतीत से
मेरा वर्तमान और भविष्य
हंसते थे एक क्रूर हंसी
पिता के संपर्कों दुनिया
पिता के जाने के बाद
मेरे लिए हो गई थी अर्थहीन

पिता का फोन बंद करने पर
एक नीरव शांति थी
एक घोषित निर्वात था
पिता का पलायन
कटु यथार्थ के रूप में हुआ घटित जीवन मे

पिता के फोन बंद करने पर
नही जताया किसी ने कोई ऐतराज़
चिता की तरह धीरे धीरे जलकर
समाप्त हो गई थी
लोक में उनकी स्मृतियां

पिता का फोन बंद करने की
सबसे त्रासद स्मृति यह है मेरे पास
उनके सगे मामा ने कहा
तुम्हें नही करना चाहिए था उसका फोन बंद
इससे पता चलता तुम्हें
तुम्हारे पिता पर था
किस-किस का कर्जा शेष

इस सुझाव को
व्यवहारिक समझा जा सकता था
मगर बतौर पुत्र मुझे यह लगा था
बेहद खराब
मरे हुए आदमी की सब चीजें छूट जाती है
कर्जा करता है मरने के बाद भी पीछा
और फोन बनता है इसका जरिया
ये बात लगती होगी
मरे हुए आदमी के जिंदा फोन को भी खराब

पिता के मरने पर
उनकी सामाजिक स्मृति का
एक मात्र साधन बचा था कर्जा
रिश्तेदारों के आत्मीय लोक में
उनके देह और कर्म
पा गए थे तत्काल मोक्ष
अस्थि कलश से भी
छोटी हो गई थी उनकी दुनिया

मुद्रा का यह सबसे क्रूरतम रूप लगा मुझे
जो मरे हुए आदमी को भी
करता था जिंदा रखने की
एक औपचारिक जिद

पिता का फोन देख
आज भी याद आती है कि
उनकी प्रिय रिंगटोन
वो यदा-कदा सपनों में आते है नजर
आज तक नही पूछा उन्होंने कभी
अपने प्रिय फोन के बारे में

न ही पूछे तो बेहतर है
क्योंकि उनकी तरह अब
फोन भी है मृत
दोनों आपस मे कर सकते है
बेहतर बातचीत

मैं केवल देख सकता हूँ
पिता का मोबाइल
पिता का दीवार पर टँगा चित्र
लिख सकता हूँ एक लंबी कविता
स्मृतियों का सहारा लेकर
कर सकता हूँ एकतरफा सम्वाद
पिता और उनका फोन
शायद इस बिनाह पर कर दें
मुझे माफ
मेरा बस इतना अधिकतम स्वार्थ है।

©डॉ. अजित

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर अभिव्यक्ति।

pushpendra dwivedi said...

हृदयस्पर्शी भावनात्मक रचनात्मक कृति

Onkar said...

सुन्दर रचना

Meena Bhardwaj said...

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति‎ .