Monday, December 24, 2018

बहस

पिता के जाने के बाद
पिता पर लिखी
पांच कविताओं में
सिमट गई पिता की स्मृतियां

कविताएं पढ़कर
याद आती रही
सम्वेदना के स्तर पर
की गई खुद की बेईमानी
होता रहा विचित्र किस्म का
अपराधबोध

धीरे-धीरे सपनों में भी
आना बंद कर दिया पिता ने
पुराणों के अनुसार
हो सकता है
मिल गई हो उन्हें मुक्ति

पिता चले जाने के बाद
जीवन में बचे
किसी शोध प्रबन्ध की
सन्दर्भ सूची की तरह

रुचि और प्राथमिकताओं का
यह सबसे लज्जित समय था

घर की दीवार पर टँगी
पिता की युवा तस्वीर से
बमुश्किल आँख मिला पाता था मैं

लगता था जैसे
फिर शुरू हो जाएगी
एक नई बहस

पिता के जाने के बाद
बाहर की दुनिया से
बहस हो गई थी विदा
और अन्दर शुरू हो गई थी
एक नई मगर सतत बहस
जो नही ले रही थी थमने का नाम

ये बात केवल जानता था
मेरे अन्दर का पिता।

© डॉ. अजित

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