Saturday, January 26, 2019

एकदिन सब ठीक हो जाएगा

वो दुनिया पर करती कोई तंज
मुझे खुद पर लगता था
वो करती किसी को खारिज़
बिखरने मेरा वजूद लगता था
उससे प्रशंसा की अपेक्षा से
लगभग मुक्त था मैं
मगर उसके कटाक्षों से
सतत भयातुर बना रहता था

अरसा बीत जाता था
उससे बतियाए हुए
मगर उसकी बातें हमेशा रहती थी
मेरे इर्द-गिर्द
इसलिए नही जानता मैं
क्या होता है अकेलापन

खुरदरे पहाड़ पर जमी हरी दूब
देख याद आता था उसका प्यार
अचानक से छाए बादल सा था
उसका गुस्सा
धूप को भागते देख
अक्सर घबरा जाता था मैं

उसकी नजरों में सदा अच्छा
बनें रहने की कोई इच्छा नही थी मेरी
मगर, सच्चा जरूर बना रहना चाहता था
दुनिया की रीत की तरह
एक दूसरे का दिल दुखाकर
अलग नही होना चाहता था मैं

और अलग होने में
दिल दुखाना अनिवार्य शर्त थी
उससे अलग होने की कल्पना की
कल्पना से भी बचता था मैं

ये बातें उसे नही थी मालूम
यह एक डरावनी बात जरूर थी

उससे रिश्ता अपवाद की शक्ल का था
इसलिए बचाता रहा उसे हमेशा किसी
वाद-विवाद से

उसका अन्न खाया था मैंने
उसके प्रेम को मीठे नही नमक के जरिए
जानता था मैं
इसलिए हमेशा चाहता था
उसकी शंकाओं के अनुमानों में
बना रहे दाल में नमक जैसा संतुलन

उसे खोने के हजार बहानो
और खोने की फिसलन को
बुद्धि से विलग रख हमेशा बचाता था
यह कालजयी संभावना
'एक दिन सब ठीक हो जाएगा'।

©डॉ. अजित

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति