जब-जब मेरे जीवन से
अनुपस्थित रही तुम
कविता ने निरस्त कर दिया
मेरा चुनाव
कविता का कौन सा
अनुबन्ध था तुम्हारे साथ
नही मुझे मालूम
मगर कुछ कविताओं के साथ
कसक के साथ याद आती रही तुम
और कुछ कविताओं ने की मेरी मदद
तुम्हें फिलहाल भूल जाने में
जब भी पढ़ता था
अपनी पुरानी कविताएं
याद आती थी हमेशा वो बातें
जो चूक गया था मैं कविता में कहने से
मगर नही बनती थी
उन बातों से कोई नई कविता
धीरे-धीरे शब्द उड़ जाते थे व्योम में
देकर मुझे सतही सांत्वना
तुम्हें याद करने के लिए
मुझे नही जरूरत थी
किसी बहाने की
मगर तुम याद आती रहती
गाहे-बगाहे किसी बहाने से
कल ही मैंने
तुम्हारा नाम पढ़ा किसी की कविता में
मुझे ठीक-ठीक प्रेमी जितनी ईर्ष्या हुई
जबकि तुम्हारा प्रेमी नही था मैं
बाद में वो कविता इतनी भायी मुझे
उसे लिखकर तकिए नीचे रख सो गया मैं
मुझे नही आया तुम्हारा कोई स्वप्न
यह सोचकर उदास नही हुआ मैं
कुछ कविताओं में जगह-जगह
आज भी तुम बैठी हो चुपचाप
एक गम्भीर श्रोता की शक्ल में
कुछ कविताओं में तुम नही हो
मैं दोनों किस्म की कविताएं
मिला देता हूँ आपस में
ऐसा करना यह भरोसा देता है मुझे
तुम कहीं हो तुम कहीं नही हो।
©डॉ. अजित
अनुपस्थित रही तुम
कविता ने निरस्त कर दिया
मेरा चुनाव
कविता का कौन सा
अनुबन्ध था तुम्हारे साथ
नही मुझे मालूम
मगर कुछ कविताओं के साथ
कसक के साथ याद आती रही तुम
और कुछ कविताओं ने की मेरी मदद
तुम्हें फिलहाल भूल जाने में
जब भी पढ़ता था
अपनी पुरानी कविताएं
याद आती थी हमेशा वो बातें
जो चूक गया था मैं कविता में कहने से
मगर नही बनती थी
उन बातों से कोई नई कविता
धीरे-धीरे शब्द उड़ जाते थे व्योम में
देकर मुझे सतही सांत्वना
तुम्हें याद करने के लिए
मुझे नही जरूरत थी
किसी बहाने की
मगर तुम याद आती रहती
गाहे-बगाहे किसी बहाने से
कल ही मैंने
तुम्हारा नाम पढ़ा किसी की कविता में
मुझे ठीक-ठीक प्रेमी जितनी ईर्ष्या हुई
जबकि तुम्हारा प्रेमी नही था मैं
बाद में वो कविता इतनी भायी मुझे
उसे लिखकर तकिए नीचे रख सो गया मैं
मुझे नही आया तुम्हारा कोई स्वप्न
यह सोचकर उदास नही हुआ मैं
कुछ कविताओं में जगह-जगह
आज भी तुम बैठी हो चुपचाप
एक गम्भीर श्रोता की शक्ल में
कुछ कविताओं में तुम नही हो
मैं दोनों किस्म की कविताएं
मिला देता हूँ आपस में
ऐसा करना यह भरोसा देता है मुझे
तुम कहीं हो तुम कहीं नही हो।
©डॉ. अजित
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