तुम
करना उससे निवेदन
पूछना
उससे उसका नैतिक बोझ
बताना,
मगर समझाना नही
सही
गलत के अपने दृष्टिकोण
छोड़
देना समय के पास
वर्जनाओं
के सारे ज्ञात संस्करण
स्वत:
तय होने देना
प्रेम
और कामना का वर्गीकरण
स्पर्शों
की आंच में सिकने देना
ज्ञात-अज्ञात
के सारे अनुभव
निहारना
उसे
किसी
निर्वासित ऋषि की दृष्टि से
सुनना
उसकी अन्तस् पुकार
होने
देना घटित
प्रिय-अप्रिय
सब एक साथ
एकदिन
पता चलेगा तुम्हें खुद
सम्बन्धों
का सारांश
फिर
कहना यह बात
मैं
ठीक से समझ नही पाया उसको.
©डॉ.
अजित
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वाह
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