इतने चुपके से जाना
जैसे बातचीत से चली जाती है
एक उन्मुक्त हँसी
जब जाना
बताकर मत जाना
अन्यथा प्रतीक्षा हो जाएगी गरिमाहीन
जब भी जाना
कुछ इस तरह से जाना
जैसे आसमान से बादल चले जाते हैं चुपचाप
ताकि दिखायी देता रहे उसका असीम नीलापन
जाना कुछ तरह से
कि लोगों को लगता रहे
तुम कहीं नही गए हो
यही हो आसपास
जब तुम चले जाओ
तो तुम्हारी बातें भी चली जाए
तुम्हारे साथ
कुछ ऐसी करना कोशिश
जब भी जाना
इस तरह जाना कि
तुम्हारा आना
लगा दे विराम
तमाम आशंकाओं पर
और तुम्हारा जाना
हो सके सहजता से विस्मृत।
© डॉ. अजित
5 comments:
वाह । एक लम्बे अन्तराल के बाद।
सुन्दर रचना
हाँ ..दोस्त ऐसा ही कुछ
वाह
वाह
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