Sunday, September 20, 2020

सारांश

 उसे नींद और बात में से 

किसी एक को चुनना था

उसने नींद में बात करना चुना।

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उससे अधिकतर बातें

अधूरी रही

हर बात छोड़ी गई उस मोड़ पर

जहां से चलना सम्भव था

मगर लौटना नहीं।

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आत्मीय बातों में अर्थदोष 

रहना चाहिए

ताकि खिसियाकर कहा जा सके

तुम समझें नही थे दरअसल

यहां 'दरअसल'

सम्भावनाओं का सूत्र रहेगा सदा।

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बातों में हँसी फिलर की तरह नहीं

उदासी की रही है सदा

जब शब्द चूक जाते हैं

तब मुस्कान आती है काम

मगर हँसी नही आती किसी काम

सिवाय एक इमोजी बनाने के।

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कुछ बातों की ध्वनि 

प्रेम से नहीं अनुराग से मिलती थी

कुछ बातों में था विशुद्ध प्रेम

कुछ बेहद मतलबी बातें थी

उस एक बात के इंतज़ार में था

हर आत्मीय संवाद 

जो नहीं किया गया कभी आरम्भ।

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सपनों की बातें सपनों में की जानी चाहिए

और कामनाओं की बातें 

पवित्रता के साथ रखी जाए 

तो मनुष्य बच सकता है

सौंदर्यबोध की अश्लीलताओं से।

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आखिरी बातें

कभी आखिरी साबित न हुई

जिन्हें समझा गया आखिरी बातें

वो बातें नही थी दरअसल

वो बातों का अनुवाद था उस भाषा में

जिसे हम भूल गए थे कब के।


©डॉ. अजित

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह। एक लम्बे अन्तराल के बाद सुन्दर सृजन।

Onkar said...

बहुत बढ़िया

Nidhi Saxena said...

वाह