Tuesday, November 30, 2021

नींद

 सुबह जल्दी जग गई

स्त्रियों के हिस्से आता है

कुछ अलग किस्म का काम


वे बुहारती है आंगन

करती है गर्म बचा हुआ दूध

देखती हैं रसोई को एक मापक दृष्टि से


लगभग नींद के खुमार में

करती जाती है सब कुछ व्यवस्थित


वे बोलती हैं बेहद कम 

शायद ही गुनगुनाती है कोई गीत 


वे जुत जाती है काम में

बिना किसी देरी के


सुबह जल्दी उठ गई स्त्रियां 

जगाती है अपने साथ उस लोक को 

जिसकी केवल स्त्रियां नागरिक हैं


सोते हुए लोग नहीं देख पाते

उनकी ये निजी दुनिया 

वे जब जगते हैं 

मिलता है सब कुछ व्यवस्थित


एक व्यवस्था के पीछे 

स्त्रियों की अधूरी नींद खड़ी होती है

इसलिए स्त्री चाहती है 

नींद में हर किस्म की व्यवस्था से मुक्ति


यदि किसी स्त्री से पूछा जाए

तो निःसंदेह वह ईश्वर से पहले 

चुनेंगी एक बेफिक्र नींद


ये अलग बात है कि

ईश्वर नींद में अनसुना कर देगा 

उनकी यह चाह


और अधूरी नींद में स्त्री करती रहेगी

ईश्वर का स्मरण, 

जीवन की तमाम असुविधाओं को

बांधकर शुभता का कलेवा 

मांगती रहेगी सबकी कुशलता की मन्नत

भूलकर अपनी नींद का वास्तविक अधिकार


व्यवस्था का यह क्रूर पक्ष है

जिससे नहीं होती है किसी की नींद खराब।


©डॉ. अजित

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर और सटीक |

Abhilasha said...

बेहतरीन सार्थक रचना