तितली और फूल के मध्य
सौन्दर्य था
मगर दृष्टि की यह सीमा थी
वो तितली के प्रयासों को सौन्दर्य समझती रही.
अर्थात !
जो मध्य है
उसे देखना सबसे मुश्किल है
भले आप सतह पर हैं या ऊपर.
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एकदिन हम उस मिट्टी के नीचे दबेंगे
जो हमारे जूतों ने मसलते हुए निकाली थी
भले उस दिन हम नंगे पैर रहे
मिट्टी हमारे पैर का जूता बना कर दम लेगी.
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अकारण किए गए वायदे
एकदिन संगठित होकर
हमसे वो सवाल पूछेंगे
जिनका बचाव किसी नारे या मुहावरे में नहीं
मिलेगा
तब हम कहेंगे
और कोई सवाल ?
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खुद को केंद्र में रखकर
चक्कर लगाना मनोरंजक है
मगर इसमें गेंद की तरह टप्पा खाने की सुविधा
नहीं
हर बार आपका लौटकर आना
वृत्त का केंद्र बदल देता है.
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मिटाते हुए भी जो मिटने से बच गया है
उन आकारों को मिलाकर
एक नक्शा बनाया जा सकता है
एक ऐसा नक्शा
जिसमें सीमाएं पानी तय नहीं करता.
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©डॉ. अजित
3 comments:
सुंदर
बेहतरीन पंक्तियाँ 🙏
सार्थक भाव सुंदर रचना
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