"अनायास ,
तुमसे परिचय हुआ
परिचय से
सम्बन्ध का अहसास हुआ,
और यही अहसास,
आज मेरे विकल मन में ,
कई भाव लिए खड़ा है
बड़ी विचित्र मुद्रा में
तुम्हारी वैचारिक परिपक्वता
मेरे लिए एक उपलब्धि है
परन्तु,
मैं इतना परिपक्व नही हूँ
कि
मित्रता के धरातल पर
खड़ा रह सकूं ठीक
तुम्हारी तरह
तुमने मुझे दिया है
संबल
एक आधार
और अधिकार
जिसके बल पर
कभी-कभी
अकारण ही डाँटता हूँ तुम्हे
व्यंग कि भाषा में
बातें करता हूँ..
और तुम सखा भाव से
मौन मुझे स्वीकार करती हो
कभी प्रतिवाद नही करती
प्रदर्शित करती हो
जैसे मैं मर्मज्ञ हूँ
और तुम अल्पज्ञ,
तुम्हारा
यह व्यवहार
मेरी समझ से परे है
एक बात तो तय है
कि
तुम असाधारण हो
और में साधारण से भी परे मेरे
प्रति तुम्हारे ये भाव
मुझे निर्बल बनाते हैं कई बार
और विशेषकर तब
जब तुम मेरी गलतियों पर
उन्मुक्त होकर मुस्कुराती हो......"
डॉ.अजीत
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