वो दो शब्द थे
और एक बात
जिस पर हम मिले
और जुदा हुए
बेसबब उदासी की वजह
इतनी बेसबब भी नही थी
कुछ मेरे और कुछ तुम्हारे
ज़ज्बात हसीन अहसास के
गवाह न बन सके
स्याह रात की खामोशी
उस खामोशी से थोडी कम ही होगी
जब हमने तय किया
कुछ दूर तक साथ चलना
साथ चलना नसीब था
चल कर बदलना हकीकत
कुछ कदम सुस्त से
कुछ मे रफ्तार
सोचता हूं आज भी वो
रास्ते किस्से सुनाते होंगे आपस मे
जब दो मुसाफिर
साथ चले थे चार मील
कभी जरुरत पडी तो उन पेडों
की गवाही ली जा सकती है
जिसकी पत्तियां
तुमने मसलते हुए कहा था
ऐसे कैसे जीया जा सकता है
मै बदला
तुम बदली
हम दोनो बदल गये
लेकिन नही बदले वो रास्ते
जो गवाह है
हमारी खामोश रातों के
कभी आपस मे बतियाते होंगे
तो वो भी उदास हो जाते होंगे
मेरी तरह
जैसे मै आज उदास बैठा हूं
तुम्हारे बिना
और तुम्हारी मुस्कान पर
कही कविता लिखी जा रही है...।
डा.अजीत
2 comments:
अंतर्मन के सुंदर भावों को शब्दों का रूप दिया
है आपने। मुझे आखिरी पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं
क्योंकि इस रचना के होने की प्रेरणा लगीं।
"और तुम्हारी मुस्कान पर........... "
dil ko choo jane walee rachana .
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