विश्वास
नही होता
तुम्हारे
बदल जाने का
खुद
के मुकर जाने
वक्त
के दोहराने का
हैरान
हूँ
तेरी
जिद पर
खुद
की बेबसी पर
दूनिया
की हंसी पर
इंतजार
है
वक्त
के बदलनें का
तेरे
सम्भलनें का
खुद
के सिमटने का
देखतें
है
कब
तक ये खेल चलेगा
वक्त
कब तक छलेगा
उम्मीद
है
कोई
रास्ता जरुर निकलेगा
तब
तक
दुआ
करें
यकीन
करें
और
जुदा हो जाएं...
बेवफाई
से ये तरकीब अच्छी है।
1 comment:
एक बार फिर अपने शेष फिर के कनवास पर अपनी जादुई कलम का कमाल दिखाना शुरू कर दिया है. बधाई
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