Monday, September 24, 2012

तरकीब



विश्वास नही होता
तुम्हारे बदल जाने का
खुद के मुकर जाने
वक्त के दोहराने का

हैरान हूँ
तेरी जिद पर
खुद की बेबसी पर
दूनिया की हंसी पर

इंतजार है
वक्त के बदलनें का
तेरे सम्भलनें का
खुद के सिमटने का 

देखतें है
कब तक ये खेल चलेगा
वक्त कब तक छलेगा

उम्मीद है
कोई रास्ता जरुर निकलेगा

तब तक
दुआ करें
यकीन करें
और जुदा हो जाएं...

बेवफाई से ये तरकीब अच्छी है।

डॉ.अजीत

1 comment:

pawan lalchand said...

एक बार फिर अपने शेष फिर के कनवास पर अपनी जादुई कलम का कमाल दिखाना शुरू कर दिया है. बधाई