मेरा
प्रेम उत्तर आधुनिक भी नही है
जहाँ
मै देह के प्रतिमानों से मुक्त हूँ
मेरा
प्रेम शास्त्रीय भी नही है कि
जिसमे
विशुद्ध कलात्मक बोध हो
मेरा
प्रेम इन दोनो से इतर प्रेम है
यह
प्रेम भी है इस पर भी अभी सन्देह है
ना
यह आसक्ति या अनुराग जैसा है
इसमे
संशय या समपर्ण दोनो महत्वहीन है
यह
प्रेम से हटकर कुछ है
और
इस कुछ को परिभाषित करने के लिए
भाषाविज्ञानियों
को नया शब्द गढना होगा
खोजनी
होगी सम्बंधो की नई अवधारणा
दरअसल,
प्रेम
के लौकिक या अलौकिक दोनों रुप से
अलग
है मेरे भाव,मेरे
चित्त की दशा और मेरा चाह
यह
बात किसी को तो क्या
तुम्हे
भी नही समझा सकता ठीक ठीक
आसक्ति,अनुराग,देह और स्नेह की प्रचलित सीमाओं
से
बहुत आगे निकल आया हूँ मैं
वह
भी तुम्हे बिना बतायें
मेरी
पडताल करते जो लोग आयेंगे
उन्हे
तुमसे मिलकर भी कोई अनुमान न मिलेगा
फिलहाल
तो
मुझे
खुद अनुमान नही है
कि मेरा तुमसे सम्बंध क्या है?डॉ.अजीत
2 comments:
प्रश्न जब उत्तर की चाह से उदासीन हो
प्रेम दिल-दिमाग, शरीर की परिधि से आगे हो
तो अनुमान की ज़रूरत नहीं
जो अनुमान से परे हों वही इस कस्तूरी की गंध को पाते हैं
…।
प्रेम हो तो बस प्रेम है
रिश्ता तो महज एक मुहर है
पति-पत्नी
माता-पिता
भाई-बहन
प्रेमी-प्रेमिका .......... जहाँ प्रेम है वहाँ बस प्रेम है
बहुत सुंदर !
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