Tuesday, December 24, 2013

अनुमान




मेरा प्रेम उत्तर आधुनिक भी नही है
जहाँ मै देह के प्रतिमानों से मुक्त हूँ
मेरा प्रेम शास्त्रीय भी नही है कि
जिसमे विशुद्ध कलात्मक बोध हो
मेरा प्रेम इन दोनो से इतर प्रेम है
यह प्रेम भी है इस पर भी अभी सन्देह है
ना यह आसक्ति या अनुराग जैसा है
इसमे संशय या समपर्ण दोनो महत्वहीन है
यह प्रेम से हटकर कुछ है
और इस कुछ को परिभाषित करने के लिए
भाषाविज्ञानियों को नया शब्द गढना होगा
खोजनी होगी सम्बंधो की नई अवधारणा
दरअसल,
प्रेम के लौकिक या अलौकिक दोनों रुप से
अलग है मेरे भाव,मेरे चित्त की दशा और मेरा चाह
यह बात किसी को तो क्या
तुम्हे भी नही समझा सकता ठीक ठीक 
आसक्ति,अनुराग,देह और स्नेह की प्रचलित सीमाओं
से बहुत आगे निकल आया हूँ मैं
वह भी तुम्हे बिना बतायें
मेरी पडताल करते जो लोग आयेंगे
उन्हे तुमसे मिलकर भी कोई अनुमान न मिलेगा
फिलहाल तो
मुझे खुद अनुमान नही है
कि मेरा तुमसे सम्बंध क्या है?

डॉ.अजीत

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

प्रश्न जब उत्तर की चाह से उदासीन हो
प्रेम दिल-दिमाग, शरीर की परिधि से आगे हो
तो अनुमान की ज़रूरत नहीं
जो अनुमान से परे हों वही इस कस्तूरी की गंध को पाते हैं
…।
प्रेम हो तो बस प्रेम है
रिश्ता तो महज एक मुहर है
पति-पत्नी
माता-पिता
भाई-बहन
प्रेमी-प्रेमिका .......... जहाँ प्रेम है वहाँ बस प्रेम है

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !