जब मैं कहता हूँ
मैं भी लिखता हूँ कविताएँ
एक दिलचस्प बातचीत में भी
ख्यात कवि की
अरुचि चरम् पर पहूंच जाती है
कवि चाहता है
एकालाप
कभी उसके
कभी उसकी कविता के बारें में
सवाल यह भी बड़ा है
कविता मेरी या उसकी
कैसे हो सकती है
कविता तो बस कविता है
हाँ कुछ कविता
नाम के सहारे तैर जाती है
लूट लेती है समीक्षकों का मत
कुछ कविताएँ
भोगती है अपने हिस्से का निर्वासन
कविता का वर्णवाद
कम खतरनाक चीज़ नही है
कविता में आरक्षण जैसी सुविधा भी नही
फिर भी हाशिए के लोगो की
कच्चें कवियों की
कविता जिन्दा है
ठीक ठाक पढ़ी भी जा रही है
इस बात पर
थोड़ा खुश जरूर हुआ जा सकता है
मगर थोड़ा ही
क्योंकि आज भी ख्यात कवि की
कविता से ज्यादा कवि के सरनेम में
दिलचस्पी है।
© डॉ. अजित
मैं भी लिखता हूँ कविताएँ
एक दिलचस्प बातचीत में भी
ख्यात कवि की
अरुचि चरम् पर पहूंच जाती है
कवि चाहता है
एकालाप
कभी उसके
कभी उसकी कविता के बारें में
सवाल यह भी बड़ा है
कविता मेरी या उसकी
कैसे हो सकती है
कविता तो बस कविता है
हाँ कुछ कविता
नाम के सहारे तैर जाती है
लूट लेती है समीक्षकों का मत
कुछ कविताएँ
भोगती है अपने हिस्से का निर्वासन
कविता का वर्णवाद
कम खतरनाक चीज़ नही है
कविता में आरक्षण जैसी सुविधा भी नही
फिर भी हाशिए के लोगो की
कच्चें कवियों की
कविता जिन्दा है
ठीक ठाक पढ़ी भी जा रही है
इस बात पर
थोड़ा खुश जरूर हुआ जा सकता है
मगर थोड़ा ही
क्योंकि आज भी ख्यात कवि की
कविता से ज्यादा कवि के सरनेम में
दिलचस्पी है।
© डॉ. अजित
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