Monday, August 3, 2015

एक दिन

उस दिन मैने दुनिया के
सबसे बड़े सर्च इंजन को
सबसे नकारा घोषित कर दिया
जिस दिन वो तुम्हें खोजनें में असफल रहा
ठीक उसी दिन मैंने
मोबाइल नेटवर्क को भी अपने जीवन में
सबसे अनुपयोगी वस्तु पाया
जब मेरे फोन में तुम्हारी खनकती आवाज़ ने
आने से इनकार कर दिया
इसी दिन मैंने
खुद को याददाश्त को खारिज किया
क्योंकि वो तुम्हारी अच्छाई
याद नही दिला पा रही थी
महज एक दिन में
फोन इंटनेट और याददाश्त
मेरे जीवन की सबसे
निष्प्रयोज्य चीज़ बन गई
इनदिनों जब तुम नही हो
मैं सोचता हूँ उस दिन के बारें में
जिस दिन के बाद
तुम, तुम न रही
और मैं भी शायद मैं नही रहा हूँ।

© डॉ. अजित 

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