Monday, August 24, 2015

मांग पत्र

हमनें बिछड़ते वक्त
कुछ भावुक वायदे किए थे

धुल गए वो धूप की बारिश में

अब वायदों के आकार बच गए है
जैसे चाय के कप की नीचे बच जाता है एक वृत्त
चाय के बाद जितना अप्रासंगिक हो चला है
अब बतकही से हरा भरा वक्त

हमनें बिछड़ते वक्त
कुछ स्पर्श दिए थे उधार

जिनके ब्याज़ से
आज तक चल रहा है
दाल रोटी नमक

मिलने बिछडनें के मांग पत्र
कोई मूल्य नही बचा है

पता नही है यह सम्बन्धों का
अर्थशास्त्र है या
मनोविज्ञान।

©डॉ.अजित 

1 comment:

मन said...

पता नही है यह सम्बन्धों का
अर्थशास्त्र है या
मनोविज्ञान।...सच काश के पता चल ही पाता