हमनें बिछड़ते वक्त
कुछ भावुक वायदे किए थे
धुल गए वो धूप की बारिश में
अब वायदों के आकार बच गए है
जैसे चाय के कप की नीचे बच जाता है एक वृत्त
चाय के बाद जितना अप्रासंगिक हो चला है
अब बतकही से हरा भरा वक्त
हमनें बिछड़ते वक्त
कुछ स्पर्श दिए थे उधार
जिनके ब्याज़ से
आज तक चल रहा है
दाल रोटी नमक
मिलने बिछडनें के मांग पत्र
कोई मूल्य नही बचा है
पता नही है यह सम्बन्धों का
अर्थशास्त्र है या
मनोविज्ञान।
©डॉ.अजित
कुछ भावुक वायदे किए थे
धुल गए वो धूप की बारिश में
अब वायदों के आकार बच गए है
जैसे चाय के कप की नीचे बच जाता है एक वृत्त
चाय के बाद जितना अप्रासंगिक हो चला है
अब बतकही से हरा भरा वक्त
हमनें बिछड़ते वक्त
कुछ स्पर्श दिए थे उधार
जिनके ब्याज़ से
आज तक चल रहा है
दाल रोटी नमक
मिलने बिछडनें के मांग पत्र
कोई मूल्य नही बचा है
पता नही है यह सम्बन्धों का
अर्थशास्त्र है या
मनोविज्ञान।
©डॉ.अजित
1 comment:
पता नही है यह सम्बन्धों का
अर्थशास्त्र है या
मनोविज्ञान।...सच काश के पता चल ही पाता
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