दो शब्दों के मध्य होता है
जितना एकांत
ठीक उतना एकांत हो सकता है
दो लोगो के मध्य
वाक्यों और संवाद के मध्य
पसरा होता है अव्यक्त का निर्वात
बोली भाषा लिपि सबकी है अपनी सीमाएं
एक बात से दूसरी बात की दूरी बताने के लिए
कोई मानक तय नही हुआ अभी
कुछ अनुमान जरूर है
प्रेम भी एक ऐसा ही अनुमान है
जो लगभग समाप्त कर देता है
कहे और अनकहे का भेद
वो भी एक ख़ास अनुपात में।
© डॉ.अजित
जितना एकांत
ठीक उतना एकांत हो सकता है
दो लोगो के मध्य
वाक्यों और संवाद के मध्य
पसरा होता है अव्यक्त का निर्वात
बोली भाषा लिपि सबकी है अपनी सीमाएं
एक बात से दूसरी बात की दूरी बताने के लिए
कोई मानक तय नही हुआ अभी
कुछ अनुमान जरूर है
प्रेम भी एक ऐसा ही अनुमान है
जो लगभग समाप्त कर देता है
कहे और अनकहे का भेद
वो भी एक ख़ास अनुपात में।
© डॉ.अजित
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