प्रेम को घुन की तरह
चाट रही थी
अति वैचारिकता
मुद्दें कुतर रहे थे
अंतरंग अव्यक्त प्रेम को
सबसे खराब था
असुविधाओं और असहमति के लिए
दुसरे को दोषी ठहराना
बावजूद इन सबके
वो सबसे ज्यादा खुद से खफा थे
बहस में दुबक गया था प्रेम
स्पष्ट बातें लगने लगी थी
ज्यादा कड़वी
कमजोर हो रहा था
प्रेम का आंतरिक लोकतंत्र
तर्कों से आहत थी सामूहिक सहनशीलता
ईश्वर को खारिज़ कर चुके थे
वो दोनों कब के
नही शेष था कोई प्रार्थना का विकल्प
चमत्कार मौजूद था
सबसे धूमिल आशा के रूप में
जो लिए जातें संकल्प
जो तोड़े जाते संकल्प
उनके लिए नही था कोई प्रार्थनारत
ईश्वर को छोड़कर।
© डॉ.अजित
चाट रही थी
अति वैचारिकता
मुद्दें कुतर रहे थे
अंतरंग अव्यक्त प्रेम को
सबसे खराब था
असुविधाओं और असहमति के लिए
दुसरे को दोषी ठहराना
बावजूद इन सबके
वो सबसे ज्यादा खुद से खफा थे
बहस में दुबक गया था प्रेम
स्पष्ट बातें लगने लगी थी
ज्यादा कड़वी
कमजोर हो रहा था
प्रेम का आंतरिक लोकतंत्र
तर्कों से आहत थी सामूहिक सहनशीलता
ईश्वर को खारिज़ कर चुके थे
वो दोनों कब के
नही शेष था कोई प्रार्थना का विकल्प
चमत्कार मौजूद था
सबसे धूमिल आशा के रूप में
जो लिए जातें संकल्प
जो तोड़े जाते संकल्प
उनके लिए नही था कोई प्रार्थनारत
ईश्वर को छोड़कर।
© डॉ.अजित
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