कॉपी पेस्ट
वहां की उत्कृष्ट रचनात्मकता थी
और शेयर करना अधिकतम कृतज्ञता
ब्लॉक करना दण्ड का अधिकतम रूप था
फ्रेंड बनाकर अन्फ्रेंड करना
तकनीकी का मानवोचित प्रयोग
फेक प्रोफाइल अय्यारी का स्कूल था
जिसमे दीक्षित होते दोनों
ब्लॉक करने वाले भी
ब्लॉक होने वाले भी
चित्रों की निजता बचाए रखने के लिए
एक मात्र उपाय ओनली मी था
जिसे करने वाला खुद पर गुस्सा होता था पहले
वायरल वीडियो और वायरल पोस्ट
दोनों बीमारी नही थी मगर बीमारी से कम भी न थी
लाइक और दिल में महज इतना फर्क था
दोनों को उलटा समझ लिया जाता था कभी कभी
इनबॉक्स मंत्राणाओं यातनाओं और परनिंदा के शिविर थे
जहां घायल योद्धा अचेत बड़बड़ाते रहते थे
यह पहली ऐसी आरोग्यशाला थी
जहां बीमार करते थे बीमार का इलाज़
वो पश्चिम के एक युवा का अंतरजाल पर षड्यंत्र था
जिसमें बुरी तरह फंस गए थे पूरब के लोग
दक्खिन के लोग हसंते थे
उत्तर के लोग रोते है ये सब देखकर
वो फेसबुक थी जिसका उच्चारण स्त्रीलिंग था
मगर जिस पर पसरा था टनों पुल्लिंग का अहंकार
पुराणों और सत्यनारायण की कथाओं से ऊबी औरतें देख रही थी वहां औसत मनुष्य का दैवीय खेल
उनका हंसना रोना महज दर्शकीय प्रतिक्रिया न थी
मंच का नाम जरूर था
मगर खेल जाते थे वहां रोज नाटक नेपथ्य में
सबके पास थे अपने अपने सच के अलौकिक संस्करण
वो मायावी दुनिया कतई नही थी
वहां के लोग मगर मायावी थे
इतने मायावी कि
ये पहचाना मुश्किल था
कौन सी प्रोफ़ाइल एक्टिवेट होकर भी
डिएक्टिवेट थी
और कौन सी डिएक्टिवेट होकर भी
एक्टिवेट।
© डॉ.अजित
वहां की उत्कृष्ट रचनात्मकता थी
और शेयर करना अधिकतम कृतज्ञता
ब्लॉक करना दण्ड का अधिकतम रूप था
फ्रेंड बनाकर अन्फ्रेंड करना
तकनीकी का मानवोचित प्रयोग
फेक प्रोफाइल अय्यारी का स्कूल था
जिसमे दीक्षित होते दोनों
ब्लॉक करने वाले भी
ब्लॉक होने वाले भी
चित्रों की निजता बचाए रखने के लिए
एक मात्र उपाय ओनली मी था
जिसे करने वाला खुद पर गुस्सा होता था पहले
वायरल वीडियो और वायरल पोस्ट
दोनों बीमारी नही थी मगर बीमारी से कम भी न थी
लाइक और दिल में महज इतना फर्क था
दोनों को उलटा समझ लिया जाता था कभी कभी
इनबॉक्स मंत्राणाओं यातनाओं और परनिंदा के शिविर थे
जहां घायल योद्धा अचेत बड़बड़ाते रहते थे
यह पहली ऐसी आरोग्यशाला थी
जहां बीमार करते थे बीमार का इलाज़
वो पश्चिम के एक युवा का अंतरजाल पर षड्यंत्र था
जिसमें बुरी तरह फंस गए थे पूरब के लोग
दक्खिन के लोग हसंते थे
उत्तर के लोग रोते है ये सब देखकर
वो फेसबुक थी जिसका उच्चारण स्त्रीलिंग था
मगर जिस पर पसरा था टनों पुल्लिंग का अहंकार
पुराणों और सत्यनारायण की कथाओं से ऊबी औरतें देख रही थी वहां औसत मनुष्य का दैवीय खेल
उनका हंसना रोना महज दर्शकीय प्रतिक्रिया न थी
मंच का नाम जरूर था
मगर खेल जाते थे वहां रोज नाटक नेपथ्य में
सबके पास थे अपने अपने सच के अलौकिक संस्करण
वो मायावी दुनिया कतई नही थी
वहां के लोग मगर मायावी थे
इतने मायावी कि
ये पहचाना मुश्किल था
कौन सी प्रोफ़ाइल एक्टिवेट होकर भी
डिएक्टिवेट थी
और कौन सी डिएक्टिवेट होकर भी
एक्टिवेट।
© डॉ.अजित
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