उसने
कहा
तुम
बदल गए हो कवि
मैं नही चाहती थी
स्थिर
प्यार की तरह
तुम
बने रहो एक जैसे हमेशा
इसलिए
तुम्हारा बदलना
मुझे
खराब नही लगा
एकदिन
हम सबको
बदलना
ही होता है
मैंने
कोई प्रतिक्रया नही दी इस बात पर
इस
तरह से पहली बार
बातचीत
में शामिल हुआ
मेरा
बदलना.
**
अचानक
एकदिन
मेरे
कान को छूते हुए उसने कहा
तुम्हारे
कान बुद्ध के कान के जैसे है
क्या
तुमनें देखे है बुद्ध के कान?
मैंने
चुटकी ली
उसने
आत्मविश्वास से कहा
हाँ
! तुम्हारे कान देखना
बुद्ध
के कान देखना ही है
फिर
मैंने कोई सवाल नही किया
इस
पर हसंते हुए उसने कहा
केवल
कान मिलते है बाकि कुछ नही
अब
मौन से बाहर से निकलो
और
नई कविता सुनाओं.
**
गहरे
अवसाद के पलों में
हम
अक्सर हो जाते थे चुप
या
हंसने लगते थे जोर-जोर से
हमारी
सामान्य बातचीत की स्मृतियाँ
इसलिए
भी है कम.
**
उसने
पूछा
अच्छा
एक बात बताओं
आदमी
किसके लिए ज़िंदा रहता है?
मैंने
कहा अपनी कायरता के लिए
और
किसके लिए मर जाता है
शायद
ज़िन्दगी के लिए
उसने
स्पष्टता से कहा
तुम्हारें
दोनों ही जवाब गलत है
तो
सही तुम बता दो, मैंने कहा
आदमी
प्यार के लिए ज़िंदा रहता है
और
अपने लिए मर जाता है
मैं
सहमत नही था
मगर
असहमत भी नही था
फिर
क्या था?
केवल
जानती थी वो.
©डॉ.
अजित
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