इन
दिनों
उससे
बातचीत बंद है मेरी
इसलिए
मैं
कह सकता हूँ
मनुष्य
का मनुष्य पर भरोसा ही
बचा
सकता है प्रेम
इन
दिनों
उसे
देखे
अरसा
बीत गया है
इसलिए
मैं देख सकता हूँ
मौसम
के अवांछित षडयंत्र
जिसे
कहा गया प्रकृति
वो
है प्रकृति की मुंहबोली बहन
प्रकृति
को जो चंद लोग जानते है
उनमे
से एक हूँ मैं
इन
दिनों
मैं
उदास नही हूँ
इसका
अर्थ यह कतई नही कि
मेरे
जीवन में दुःख हो गए है अनुपस्थित
मैंने
दरअसल उसके बिना
दुखों
पर बात करना कर दिया है बंद
सुख
नही मंडराते मेरे इर्द-गिर्द
उन्हें
दुःख की उपेक्षा का दुःख है
इन
दिनों
मैंने
सीख लिया
सम्बन्धो
का एक नया व्याकरण
जिसमें
कोई पुनरुक्ति दोष नही है
इसलिए
मैनें बदल दिए
प्रश्न
चिंह और पूर्ण विराम आपस में
यह
लिपि केवल तुम पढ़ सकती थी
जो
इसे पढ़ने का कर रहे है प्रयास
उनके
पास सूत्र नही कयास है
वो
स्मृतियों के है गुलाम
इसलिए
वो कभी नही कर पाएंगे भेद
प्रेम
और प्रेम पत्र में
इन
दिनों
मेरे
पास सलाह की अधिकता है
इसलिए
नही कर पाता हूँ
उचित-अनुचित
में भेद
इन
दिनों
जब
तुम नही हो
मैं
लिख रहा हूँ
आधा
सच आधा झूठ
कुछ
भी पूरा लिखने के लिए
तुम्हारा
होना था बेहद जरूरी
ताकि
तुम कह सको
‘ये
ठीक नही किया तुमने’
©
डॉ. अजित
No comments:
Post a Comment