Wednesday, December 19, 2018

दुःखों का एकांत

अपने जीवन के
विकटतम दुःखों में
वो मुझसे सम्पर्क काट
लेती थी
बतौर दोस्त यह बात
मुझे लगती थी
बेहद खराब

उसे नही था पसन्द
अपने दुःख बांटना किसी के साथ
हमारी अधिकांश बातें
छिटपुट सुखों की बातें हैं
चाय या शराब की बातें हैं
यात्राओं और दर्शन की बातें है

हमारी बातों में यदि तलाशा जाए
कोई एक केंद्रीय भाव
तो मुश्किल होगा यह तय करना
वो किस किस्म की बातें हैं

उन्हें एक साथ पढ़कर
कोई कर सकता है
हमारी मित्रता पर भी
सन्देह

उसके विकट दुःखों में
मेरा कोई हस्तक्षेप नही रहा
इस बात का रहेगा
मुझे हमेशा बड़ा दुःख

उसे सांत्वना जैसे औपचारिक शब्दों से
होती थी एक खास चिढ़
इसलिए हमेशा रहना पड़ता था
शब्द चयन में थोड़ा सावधान

वो हमेशा लड़ी अपने
दुःखों से एकदम अकेले
उसके दुःखों की
औपचारिक सूचना के अलावा
कोई जानकारी नही मेरे पास

मेरे सुख
इस बात पर हिकारत से
देखतें थे मुझे
मुझे हंसते हुए होती थी बहुधा ग्लानि

क्योंकि

जब इधर हँस-मुस्कुरा रहा होता हूँ मैं
हो सकता है
ठीक उसी समय वो
घिरी बैठी हो जीवन के
सघन दुःखों के बीच
नितांत अकेली।

©डॉ. अजित