Wednesday, September 18, 2019

अपना खेत


खेत खलिहान पर जाती हर पगडंडी
की स्मृति इतनी मजबूत है
वह बता सकती है
मेरे पूर्वजों की जूती का नाप  
उनकी फटी बिवाई से झरी हुई  
मिट्टी की मात्रा

खेत की हवा और पानी
दोनों जानती है
पीढ़ियों तक की देहगंध और प्यास
उन्हें नही जरूरत किसी विज्ञान की
मुझे पहचानने के लिए

खेत मुझे दूर से आता देख
खुश हो सकता है
फसलों को दे सकता है आदेश
मुझे आता देख झूमने के लिए
वो बाट जोह सकता है मेरी
कई पीढ़ियों तक

वो हो सकता है चिंतित
मेरे न आने पर
वो भेज सकता है मेरे पास
अपनी शुभकामनाएं शहर तक

वो आ सकता है अपनी इच्छा से कभी भी
भोर के सपनें में किसी पुराने दोस्त की शक्ल लेकर उधार

खेत की जिस मिट्टी में
उगता है अन्न
वहीं उगता है मेरा एक दूसरा मन
जो सबकी खबर रखता है
मगर खुद की खबर नही देता है किसी को

जानने के लिए उसका हाल चाल
मुझे एक खेत चाहिए बस
और
जरूरी नही वो मेरा अपना खेत हो.

© डॉ. अजित  

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