Tuesday, September 24, 2019

आदत


मैंने तुम्हें
मेरी आदत नही होने दी
जब-जब ऐसा लगा
तुम राग से हो रही हो अधीर
हंसकर पूछती हो प्रश्न अति-गम्भीर
मैं सतर्क हो गया
ठीक उसी वक्त
बदल दिया बातचीत का विषय
और हमारे मध्य
खींच दी एक महीन लकीर

जानता हूँ
तुम्हें मेरा उपरोक्त दावा
एकदम झूठा लगेगा
मगर यह उतना भी झूठा नही है

मैं जानता था यह बात
आदत बहुत धीरे-धीरे लगती है
मगर एक बार अगर लग जाए यह
फिर मुश्किलें होती हैं बहुत
मन हो जाता चातक
और बुद्धि भाग्यवादी  

ऐसा नही है कि
मैं हमेशा था चालाक
अलबत्ता तुम्हारे सामने
चल भी नही पाती
मेरी कोई चालाकी

बस, मैंने बचाया तुम्हें
आदत होने के उपक्रम से
क्योंकि
अगर किसी भी आदत नही होनी चाहिए
चाहे वो दोस्त हो या प्रेमी

तुमसे मिलनें से पहले
मैं जानता था यह बात
किसी की आदत होना
उसे खोना है

इसलिए मैंने बचाया
तुम्हें और खुद को
उस खोने से
हमेशा के लिए.
© डॉ. अजित

2 comments:

Sweta sinha said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

सुशील कुमार जोशी said...

वाह