Thursday, September 19, 2019

बीमारी

बीमारी अकेले आती है
एकदम दबे पांव

लेती है घर का जायज़ा
एकदम चुपचाप

चुनती है अपने ठिकाने
सिलसिलेवार

विजय-पराजय के भाव से
औषधियों से
करती है रोज़ खुलकर सामना

सदकामनाएं खोजती है
अपने बिछड़े हुए भाई बन्धु
जाती है दोस्तों के सपनों में
भेष बदलकर
ताकि उन्हें बता सके हमारा हालचाल
जो ईश्वर से भी पहले
हर बीमारी में आते हैं हमें याद

बीमार आदमी दवाई के साथ
हिचकियों को भी रखता है हिसाब

बीमारी देर से जाती है
और जाते-जाते छोड़ जाती
अपने निशान

ताकि मनुष्य को याद रहे
खुद का मनुष्य होना
और ईश्वर को याद रहे
मनुष्य का दृष्टा होना।

©डॉ. अजित

1 comment:

Onkar said...

सुन्दर रचना