बीमारी अकेले आती है
एकदम दबे पांव
लेती है घर का जायज़ा
एकदम चुपचाप
चुनती है अपने ठिकाने
सिलसिलेवार
विजय-पराजय के भाव से
औषधियों से
करती है रोज़ खुलकर सामना
सदकामनाएं खोजती है
अपने बिछड़े हुए भाई बन्धु
जाती है दोस्तों के सपनों में
भेष बदलकर
ताकि उन्हें बता सके हमारा हालचाल
जो ईश्वर से भी पहले
हर बीमारी में आते हैं हमें याद
बीमार आदमी दवाई के साथ
हिचकियों को भी रखता है हिसाब
बीमारी देर से जाती है
और जाते-जाते छोड़ जाती
अपने निशान
ताकि मनुष्य को याद रहे
खुद का मनुष्य होना
और ईश्वर को याद रहे
मनुष्य का दृष्टा होना।
©डॉ. अजित
एकदम दबे पांव
लेती है घर का जायज़ा
एकदम चुपचाप
चुनती है अपने ठिकाने
सिलसिलेवार
विजय-पराजय के भाव से
औषधियों से
करती है रोज़ खुलकर सामना
सदकामनाएं खोजती है
अपने बिछड़े हुए भाई बन्धु
जाती है दोस्तों के सपनों में
भेष बदलकर
ताकि उन्हें बता सके हमारा हालचाल
जो ईश्वर से भी पहले
हर बीमारी में आते हैं हमें याद
बीमार आदमी दवाई के साथ
हिचकियों को भी रखता है हिसाब
बीमारी देर से जाती है
और जाते-जाते छोड़ जाती
अपने निशान
ताकि मनुष्य को याद रहे
खुद का मनुष्य होना
और ईश्वर को याद रहे
मनुष्य का दृष्टा होना।
©डॉ. अजित
1 comment:
सुन्दर रचना
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