Wednesday, January 2, 2008

उन्मुक्तता

" तुम और तुम्हारी
उन्मुक्त हँसी,
कई बार मुझे प्रिय-अप्रिय
लगती है
क्योंकि
कभी-कभी
महसूस होता है
तुम्हारी उन्मुक्तता
एक दिन तुम्हारे
सरल व्यक्तित्व का
एक दोष न बन जाए
उन्मुक्तता से तुम्हारा
पक्ष रखने का तरीका
मुझे वाकई पसंद है
लेकिन
जब तुम भूल कर
अपनी परिपक्वता
जिद करती हो
एक बच्चे की तरह
तब
मुझे क्षणिक आवेश भी
आता है
लेकिन मेरा यह आक्रोश
उस समय
व्यर्थ महसूस होता है
जब तुम ,
मेरी गलतियों पर
परदा डाल रही होती हो
तर्क नही कुतर्को के साथ
हाँ ! वो बात अलग है
उस समय
तुम्हारी उन्मुक्तता
आवरण ओढ़ लेती है
अपनत्व का..."

डॉ. अजीत

6 comments:

अजित वडनेरकर said...

घनी अनुभूतियां रखते हैं डॉक्टर साहब....
आपने काफी ज्यादा लिख दिया। ज़रूरत ही नहीं थी। नाम बड़े नहीं होते। ये सब मित्र हैं वर्ना समय कहां मिल पाता है। अब आपने जोड़ लिया है तो हुआ करेगी मुलाकातें।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

डॉक्टर साहब....
२००८ के इस नव वर्ष में आप इसी तरह मन की गहराई से निकली बातें , कविता व गध्य में लिखते रहें यही शुभ कामना है ..

आपका जाल घर आज ही देखा ...आपके शहर के बारे में भी लिखियेगा.
समाजशास्त्र और psychology मेरा भी Graduating विषय रहा है ....
शेष कुशल ...

-- लावण्या

Pankaj Oudhia said...

आपका अपना अलग निराला ढंग है कविता लिखने का। आनन्द आया। आप तो पाँडकास्टिंग भी शुरू करे क्योकि कवि के मुख से कविता का आनन्द कुछ और ही होता है।

Rachna Singh said...

सभी बड़े नामो के ब्लॉग पर आपके कमेंट्स पढता हूँ॥ भई हमारा न तो कोई बड़ा नाम है न कोई पहचान फ़िर भी ब्लॉग का दुनिया में एक छोटा सा अपना भी घोसला बना लिया है ..एक सवाल जेहन में कई बार उठता है की क्या नाम/पहचान/ और सब कुछ एक खास वर्ग के लिए है और आपके कमेंट्स भी....कुछ लिखा है कुछ लिखना है बाकि....आपका स्नेह चाहूँगा...अपना पता है-www।shesh-fir.blogspot.comडॉ. अजीत शेष फ़िर.......

डॉ अजीत ,
आप मेरे ब्लोग पर ये कमेन्ट दे गए !! क्या जावब दूँ ? मेरे स्नेह की कामना है , सो पूरी करती हूँ । स्नेह का कोई वर्गीकरण नहीं होता है । पता नहीं कैसे आप का ब्लोग नज़र मे नहीं आया । शमा करे पर पढ़ कर लगा नुकसान तो मेरा ही हुआ है । आप की ये कविता मुझे लगा मेरे उपर ही लिखी गयी है । शब्दों मे इतनी ताकत होती है कि वह अन जानो कि व्यथा - कथा को बोल देते है । आप लिखते रहेगे ऐसा मेरा विश्वास है और कमेंट्स के लिये ना लिखे , केवल अपनी संतुष्टी के लिये लिखे । कमेंट्स खुद बा खुद आये गे । और अपने ब्लोग पर कॉपी राइट का निशान अवश्य लगाये ।
जो भी पढ़ है उसने मन को छुआ है

नीरज गोस्वामी said...

तुम्हारी उन्मुक्तता
एक दिन तुम्हारे
सरल व्यक्तित्व का
एक दोष न बन जाए
बहुत खूब अजित जी...वाह वाह...
आप ने जो aarop लगाये हैं वो शायद ठीक हों लेकीन सच ये है की कमेंट मैंने ये देख के कभी नहीं दिए की लेखक कौन है, गीत ग़ज़ल मेरे प्रिये क्षेत्र हैं इसलिए जहाँ वो नज़र आती है पहुँच जाता हूँ. आप के ब्लॉग पर आना नहीं हुआ इसमें भूल मेरी है क्षमा करें. आप को न पढने से नुकसान मेरा ही हुआ है ये मुझे मालूम पढ़ गया है. चलिए अब तो आना जाना लगा ही रहेगा.
रचना सिंह जी की ये बात हमेशा याद रखिये "कमेंट्स के लिये ना लिखे , केवल अपनी संतुष्टी के लिये लिखे । कमेंट्स खुद बा खुद आये गे ।"
नीरज

Dr.Ajit said...

अब आप सब अपने है आपको कमेंट्स के लिए धन्यवाद लिखु तो एक पल में फ़िर पराया हो जाऊंगा, ये सच है की कविता अपनी खुशी के लिए लिखी जाती है लेकिन मेरा मानना है की यदि सम्वेदना से जुड़े लोग उस पर अपनी भावपूर्ण प्रतिक्रिया दे तो उस लेखन का सुख व्यापक हो जाता है..साथ ही अपने जैसो की तलाश भी एक बहाना होता है, कुछ चीज़ ही उसमे ऐसी थी वो झूठ बोलता था और मुझे ऐतबार था..
आशा नही अधिकार के साथ आप सभी का सतत स्नेह चाहूँगा...
शेष फ़िर..
डॉ.अजीत