Sunday, January 6, 2008

परिणाम

" तुमसे परिचय
कोई नियोजित
प्रयास का हिस्सा नही था
तुम्हारे स्वाभाविक प्रश्न,
नजरिया
एवं वैचारिक परिपक्वता
स्वत: ही हिस्सा थी
एक विशेषता थी....
अनुभव रोचक रहा
इस अल्पयात्रा का
परन्तु
तुम्हारी परिभाषा को
संबोधन में बांधना
मेरे शब्द सामर्थ्य
से परे की बात है
यह सत्य है
कि
शायद
प्रथम और अन्तिम बार
मैं प्रभावित रहा
तुमसे ही नही
तुम्हारे जीवन के प्रति
प्रत्येक दार्शनिक नज़रिये से
एक बात थी
जो तुम्हे भिन्न करती थी
मेरे अन्य निकटस्थ लोगो से
तुम्हारा अपेक्षाबोध
स्नेह्बोध की अपेक्षा
आंशिक था
समर्पण की पंक्ति की
तुम हमेशा अग्रिम प्रहरी रही
और पहली बार देखा
किसी को
दीर्घता से लघुता की
ओर बढ़ते हुए
तुम शून्य की तरफ बढ़ रही थी
वह भी बगैर
किसी जिजीविषा के साथ
कभी-कभी सोचता हूँ
कि
तुम्हारा विशेष व्यक्तित्व
अनुभव का सारांश है
और संवेदनशीलता
एक वरदान
भयातुर होता हूँ
जब तुम बातें
करती हो उलझी -उलझी सी ....
शायद
उनमे छिपा अर्थ
समझने का सामाजिक साहस
मुझमे नही
संबोधन में अपनत्व
संबंधो में सम्मान
और भविष्य में जो सम्भव न हो सके
उसके करीब से
बड़ी सफाई से कैसे
गुजरा जाता है
ये तीन बातें तुम से सीख पाया हूँ
मुझसे क्या सीखा है
तुमने
ये तो तुम ही बेहतर
बता सकती हो
हाँ !
कभी-कभी अकेले में
ख़ुद अपने आप से
बातें करते वक्त
अधीर होकर , सजल नेत्रों से
कुछ अजीब सा बडबडाना
संभवत मुझ से परिचय का परिणाम है ...."

डॉ. अजीत

2 comments:

अनूप भार्गव said...

समर्पण की पंक्ति की
तुम हमेशा अग्रिम प्रहरी रही
और पहली बार देखा
किसी को
दीर्घता से लघुता की
ओर बढ़ते हुए,
आपकी ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी, माफ़ी चाहती हूँ कि आपके ब्लाग पर काफ़ी समय से नहीं आई. बहुत अच्छा लगा पढ़्कर.

रजनी भार्गव said...

पहली टिप्पणी मेरी ओर से है,अनूप को भी आपकी कविताएँ अच्छी लगी हैं.