हौसलों की बात करते रहे
बुझदिलो की महफिल मे सजते रहे
हम वो चराग है अपनी महफिल के
जो उजालो मे भी जलते रहे
बुझना तो चाहा कई बार
मगर कुछ मरासिम हसरतो मे पलते रहे
बुलन्दी का नशा होता तो कैसे होता
जिन्दगी किराये का घर था बदलते रहे
लबो पे हँसी आई तो टिक न सकी
आँसू पलको तले पलते रहे
अदब न समझ मे आया दूनिया का
तहजीब सीखाने वाले अब हद मे रहे
न अब दोस्ती किसी से न अदावत
न कोई शिकवा न शिकायत
सबक यही मिला हँसी से कही बेहतर है
याद बनकर किसी के चश्मेतर मे रहे...।
डा.अजीत
11 comments:
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर अल्फाजों के साथ इंसाफ किया है, शुभकामनायें रचना
vastav mai kabil-e-tareef keha hai.
हम वो चराग है अपनी महफिल के
जो उजालो मे भी जलते रहे ....
वाह अजीत भाई....
क्या बात कही है आप ने...
कभी समय निकाल कर 'हिन्दी हाइकु' बलॉग आइगा ।
हरदीप सँधू
(शब्दों का उजाला)
सबक यही मिला हँसी से कही बेहतर है
याद बनकर किसी के चश्मेतर मे रहे...।
sahi farmaya aapne..sundar lagi aapki rachna !
अजीत भाई। अच्छी पोस्ट शुभकामनायें ।
kya bhat hai Dr. ajeet bhaiji. lage raho aisi mahfilon ki khinchai karne mein jinhone is tarah barbad kiya tere kirdar ko...
हौसलों की बात करते रहे
बुझदिलो की महफिल मे सजते रहे
हम वो चराग है अपनी महफिल के
जो उजालो मे भी जलते रहे
बुझना तो चाहा कई बार
मगर कुछ मरासिम हसरतो मे पलते रहे
बुलन्दी का नशा होता तो कैसे होता
जिन्दगी किराये का घर था बदलते रहे
Baat to yahin mukammal ho gayi!!
Bade dinon se aapke blog pe aanaa chaah rahi thi...aaj aahi gayi.Purkashish likhte hain aap!
bahut khoob sir ji!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
आपको बधाई हो भाई..!!
सिर्फ यह रचना ही नहीं आपका पूरा ब्लॉग ही मुझे बहुत पसंद आया. वैसे अभी पूरा पढ़ नहीं पाया पर जितना पढ़ा उतना ही काफी था थकान मिटाने के लिए और रि-फ्रेश होने के लिए. आपका सेंस ऑफ ह्यूमर भी तारीफ़ के काबिल है. Please keep it up bhai ...!!
mai soch rahee hoo aap itana accha likhate hai...par comments aajkal kum kyo?
aap doosaro ke blogs par comment chodate hai na?
i am really impressed with your blog.
i am a grandma now so not getting eneough time these days but w'd love to catch up with all of your writings .
all the best.
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