तन्हाई का सबब खुद्दारी मे निकला
रहबर जिसे समझा
वो माहिर अय्यारी मे निकला
इम्तिहान इतने लिए ज़िन्दगी ने
हर लम्हा किसी गैर की तरफदारी मे निकला
फकीर जब उसके दर पर बेआबरु हुआ
किरदार तब उसका अदाकारी से निकला
खामोशी बेबसी की तहरीर थी
इल्जाम गवाह की ईमानदारी पे निकला
खुदा भी हैरान रहा इस बात पर
ताउम्र खुशियाँ बेचने वाले का
आखिरी वक्त बडी बेज़ारी मे निकला...।
डा.अजीत
8 comments:
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
अंतिम पंक्तिय मार्मिक अंदाज में भिगो गयी.
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
mann ke bhaav ujagar kar diye apne Dr. Saab. bahut marmik likha hai apne isbar..
इम्तिहान इतने लिए ज़िन्दगी ने....
जी हाँ....ज़िन्दगी को अगर कोई दुसरे नाम से पुकारना हो तो ' इम्तिहान' कह सकते हो...
भावपुर्ण कविता...
डा.अजीत जी
नमस्कार !
अच्छी काव्य रचना है "सज़ा"
आपकी अन्य रचनाएं भी पढ़ीं ।
सेवा के साथ सृजन अच्छा संयोग है ।
मेरी शुभकामनाएं हैं ।
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
भावपुर्ण कविता...
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