कुछ लोग मुझसे छूट रहें है
कुछ लोगो से मैं छूट रहा हूँ
ऐसा नही हमारी पकड़ ढ़ीली है
दरअसल
हमारे हथेलियों में सन्देह का पसीना है
जिसकी नमी से स्पर्श खिसक रहें इंच भर
धरती के गुरुत्वाकर्षण के उलट
बदल रहें है हमारे केंद्र
एक दिन वो भी आएगा
जब सूरज निकलेगा एकदम अकेला
योजनाओं का साक्षी नही बनना पड़ेगा उसे
चांदनी के पास नही होगा एक चुस्त तलबगार
धरती उस दिन होगी सबसे अकेली होगी
छूटे हुए लोगो के लिए
अनजानी हो जाएगी हर चीज
जिसमें मैं भी शामिल हूँ
मैं नदी झरनें और पहाड़ को
तब सुनाऊंगा एक उदास गीत
जिसके मुखड़े को सुन बारिश हो जाएगी
और भाप बन उड़ने लगेंगी यादें
स्मृतियों के जंगल से।
© डॉ. अजित
कुछ लोगो से मैं छूट रहा हूँ
ऐसा नही हमारी पकड़ ढ़ीली है
दरअसल
हमारे हथेलियों में सन्देह का पसीना है
जिसकी नमी से स्पर्श खिसक रहें इंच भर
धरती के गुरुत्वाकर्षण के उलट
बदल रहें है हमारे केंद्र
एक दिन वो भी आएगा
जब सूरज निकलेगा एकदम अकेला
योजनाओं का साक्षी नही बनना पड़ेगा उसे
चांदनी के पास नही होगा एक चुस्त तलबगार
धरती उस दिन होगी सबसे अकेली होगी
छूटे हुए लोगो के लिए
अनजानी हो जाएगी हर चीज
जिसमें मैं भी शामिल हूँ
मैं नदी झरनें और पहाड़ को
तब सुनाऊंगा एक उदास गीत
जिसके मुखड़े को सुन बारिश हो जाएगी
और भाप बन उड़ने लगेंगी यादें
स्मृतियों के जंगल से।
© डॉ. अजित
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