Sunday, September 27, 2015

सम्भालना मुझे...

संभालना मुझे उस नाजुक दौर में
जब भूल जाऊं मैं
धरती और आसमान का फर्क
बातें करूँ बहकी बहकी
हो सकता हूँ मैं बेहद सतही भी
जब कभी अनायास वाणी से
हिंसा पर उतर आऊं
होता जाऊं क्रूर और कड़वा
संभाल लेना मुझे
उस नाजुक दौर में
जब तुम्हें खोने के मेरे पास
हजार बहाने हो
और तुम्हें सम्भाल कर रखने का
कौशल हो गया हो समाप्त
अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद
मुझे आश्वस्ति है
तुम सम्भाल लोगी मुझे
उस नाजुक दौर में
ठीक अपनी तरह ।

© डॉ. अजित

No comments: