मेरे हमदर्द होने का वो यूं पता देते थे
दर्द जहां था बस वहीं से दबा देते थे
जमानतें मांगता था वो दुनिया भर की
आदतन हम अपना शेर सुना देते थे
तड़फने का एक मंसब इतना हसीं था
रोते हुए भी बारहा हम मुस्कुरा देते थे
बिछड़ कर उनसे हुआ ये मालूम हमें
शिकारी भी कभी परिंदे उड़ा देते थे
रात का सफर एक मुसलसल किस्सा था
रोज़ सुबह ख़्वाबों की ख़ाक उड़ा देते थे
© डॉ.अजित
दर्द जहां था बस वहीं से दबा देते थे
जमानतें मांगता था वो दुनिया भर की
आदतन हम अपना शेर सुना देते थे
तड़फने का एक मंसब इतना हसीं था
रोते हुए भी बारहा हम मुस्कुरा देते थे
बिछड़ कर उनसे हुआ ये मालूम हमें
शिकारी भी कभी परिंदे उड़ा देते थे
रात का सफर एक मुसलसल किस्सा था
रोज़ सुबह ख़्वाबों की ख़ाक उड़ा देते थे
© डॉ.अजित
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