एक डिप्रेश सी शाम में
याद आता है
सबसे उदास गीत
जिसके एक अन्तरे में
तुम्हारा जिक्र मिलता है
उसी जिक्र के सहारे
मैं लौट आता हूँ
खुद के गैर जरूरी
होने की वसीयत पर
अफ़सोस
वो अमल करने लायक
तभी होगी
जब रफ्ता रफ्ता खतम हो जाऊँगा मैं
जैसे खतम हो जाती
नए कलम में पुरानी स्याही।
©डॉ. अजित
याद आता है
सबसे उदास गीत
जिसके एक अन्तरे में
तुम्हारा जिक्र मिलता है
उसी जिक्र के सहारे
मैं लौट आता हूँ
खुद के गैर जरूरी
होने की वसीयत पर
अफ़सोस
वो अमल करने लायक
तभी होगी
जब रफ्ता रफ्ता खतम हो जाऊँगा मैं
जैसे खतम हो जाती
नए कलम में पुरानी स्याही।
©डॉ. अजित
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