दिखनें में होता है
बेहद सामान्य
या फिर औसत से थोड़ा बेहतर
वाग्मिता में निपुण
और औचित्य सिद्ध में दीक्षित
अंदर से मरा हुआ आदमी
मौत एक ही बार नही आती
यह उपस्थित रहती है टुकड़ो में भी
अंदर से मरे हुए आदमी को
कुछ ही जिन्दा लोग पहचान पातें है
ये शिनाख्त करने का कौशल
लगभग जीवनपर्यन्त उपलब्धि जैसा है
और उनके जिन्दा होने का प्रमाण भी
अंदर से मरा हुआ आदमी
कम हंसता है
वो जानता है हंसी की कीमत
कम बोलता है
उसे होता है मृत्यु के सार्वजनिक होने का भय
वो तलाशता है एकांत
ताकि अंदर की मौत को बाहर विदा कर सके
मगर हर बार
मौत लौट कर आती है उस तक चुपचाप
अंदर से मरे हुए आदमी को
अनिच्छा से होता है प्रेम
वो करता जाता है विलम्बित
पंचांग के तमाम शुभ महूर्तों को
अंदर से मरा हुआ आदमी
जिन्दा लोगो के बीच सबसे खतरनाक जीव है
क्योंकि वो बार बार याद दिलाता है
जिन्दा और मरे हुए का फर्क
जिंदा रहने के लिए
इस फर्क को भूलना अनिवार्य योग्यता है
इसलिए अंदर से मरा हुआ आदमी
बाहर जिन्दा रहता है
ताकि जिंदा रहें बाहर के लोग।
© डॉ.अजित
बेहद सामान्य
या फिर औसत से थोड़ा बेहतर
वाग्मिता में निपुण
और औचित्य सिद्ध में दीक्षित
अंदर से मरा हुआ आदमी
मौत एक ही बार नही आती
यह उपस्थित रहती है टुकड़ो में भी
अंदर से मरे हुए आदमी को
कुछ ही जिन्दा लोग पहचान पातें है
ये शिनाख्त करने का कौशल
लगभग जीवनपर्यन्त उपलब्धि जैसा है
और उनके जिन्दा होने का प्रमाण भी
अंदर से मरा हुआ आदमी
कम हंसता है
वो जानता है हंसी की कीमत
कम बोलता है
उसे होता है मृत्यु के सार्वजनिक होने का भय
वो तलाशता है एकांत
ताकि अंदर की मौत को बाहर विदा कर सके
मगर हर बार
मौत लौट कर आती है उस तक चुपचाप
अंदर से मरे हुए आदमी को
अनिच्छा से होता है प्रेम
वो करता जाता है विलम्बित
पंचांग के तमाम शुभ महूर्तों को
अंदर से मरा हुआ आदमी
जिन्दा लोगो के बीच सबसे खतरनाक जीव है
क्योंकि वो बार बार याद दिलाता है
जिन्दा और मरे हुए का फर्क
जिंदा रहने के लिए
इस फर्क को भूलना अनिवार्य योग्यता है
इसलिए अंदर से मरा हुआ आदमी
बाहर जिन्दा रहता है
ताकि जिंदा रहें बाहर के लोग।
© डॉ.अजित
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