Friday, October 16, 2015

आदमी

दिखनें में होता है
बेहद सामान्य
या फिर औसत से थोड़ा बेहतर
वाग्मिता में निपुण
और औचित्य सिद्ध में दीक्षित
अंदर से मरा हुआ आदमी
मौत एक ही बार नही आती
यह उपस्थित रहती है टुकड़ो में भी
अंदर से मरे हुए आदमी को
कुछ ही जिन्दा लोग पहचान पातें है
ये शिनाख्त करने का कौशल
लगभग जीवनपर्यन्त उपलब्धि जैसा है
और उनके जिन्दा होने का प्रमाण भी
अंदर से मरा हुआ आदमी
कम हंसता है
वो जानता है हंसी की कीमत
कम बोलता है
उसे होता है मृत्यु के सार्वजनिक होने का भय
वो तलाशता है एकांत
ताकि अंदर की मौत को बाहर विदा कर सके
मगर हर बार
मौत लौट कर आती है उस तक चुपचाप
अंदर से मरे हुए आदमी को
अनिच्छा से होता है प्रेम
वो करता जाता है विलम्बित
पंचांग के तमाम शुभ महूर्तों को
अंदर से मरा हुआ आदमी
जिन्दा लोगो के बीच सबसे खतरनाक जीव है
क्योंकि वो बार बार याद दिलाता है
जिन्दा और मरे हुए का फर्क
जिंदा रहने के लिए
इस फर्क को भूलना अनिवार्य योग्यता है
इसलिए अंदर से मरा हुआ आदमी
बाहर जिन्दा रहता है
ताकि जिंदा रहें बाहर के लोग।

© डॉ.अजित


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