बहुत दिन बाद उसने अपना हाल लिखा
कही पे जलाल तो कहीं पे मलाल लिखा
तासीर ही उस ताल्लुक की कुछ ऐसी थी
अहसास ए हकीकत को भी ख्याल लिखा
जिन दिनों परेशां था आरजू ओ' ज़ुस्तज़ु में
उन दिनों को ही उसने महज कमाल लिखा
मुहब्बतों के खत लिखतें है जमाने के लोग
मगर उसनें अपनी नफरतों का हाल लिखा
माँगा नही जवाब हमनें अपनी हसरतों का
फिर भी सवाल के जवाब में सवाल लिखा
मिलना बिछड़ना गोया तकदीर का खेल था
साथ होना फिर भी हमारा बेमिसाल लिखा
©डॉ.अजित
कही पे जलाल तो कहीं पे मलाल लिखा
तासीर ही उस ताल्लुक की कुछ ऐसी थी
अहसास ए हकीकत को भी ख्याल लिखा
जिन दिनों परेशां था आरजू ओ' ज़ुस्तज़ु में
उन दिनों को ही उसने महज कमाल लिखा
मुहब्बतों के खत लिखतें है जमाने के लोग
मगर उसनें अपनी नफरतों का हाल लिखा
माँगा नही जवाब हमनें अपनी हसरतों का
फिर भी सवाल के जवाब में सवाल लिखा
मिलना बिछड़ना गोया तकदीर का खेल था
साथ होना फिर भी हमारा बेमिसाल लिखा
©डॉ.अजित
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