देह की थकन देना चाहती है
मन को विश्राम
वो नींद को करती है स्वीकार
बिना किसी परिभाषा के
मन की थकन चाहती है मांगना
देह से कवच कुण्डल
वो लौटा देती है नींद को बिना पता बताए
दोनों थकानों में थकता है
एक मनुष्य
जिसे बाद में कहा जाता है
एक औसत मनुष्य।
©डॉ.अजित
मन को विश्राम
वो नींद को करती है स्वीकार
बिना किसी परिभाषा के
मन की थकन चाहती है मांगना
देह से कवच कुण्डल
वो लौटा देती है नींद को बिना पता बताए
दोनों थकानों में थकता है
एक मनुष्य
जिसे बाद में कहा जाता है
एक औसत मनुष्य।
©डॉ.अजित
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