Wednesday, September 21, 2016

भदेस

उसने पूछा
क्या तुम कम्युनिस्ट हो?
मैंने कहा तुम्हें कैसे लगा
विरोधाभासों में जीते हो अक्सर
बैचेन भी हो और कंफर्टेबल भी
तुम्हारे पास समस्या है समाधान नही
तर्क है मगर व्यावहारिक संवदेना नही
हित की बातें करते वक्त हो जाते हो
एक तरफा और अतिवादी
इस हिसाब से तो प्लान्ड अपोर्चुनिस्ट हुआ मैं
मैंने हंसते हुए कहा
नही इतने भी चालाक नही हो तुम
मगर मुझे डर है बन सकते हो एकदिन
विचार उत्तेजना के साथ बेईमानी भी सिखाता है
जैसे तर्क को प्रयोग किया जा सकता है मनमुताबिक
तो क्या विचारशून्य होना चाहिए मुझे?
मैंने प्रतिवाद करते हुए कहा
यद्यपि यहां 'चाहना' एक असुविधा है
मगर मैं चाहती हूँ तुम ईमानदार रहो
प्रेम में
विचार में
सम्वेदना में
और सबसे बढ़कर खुद के साथ।
***
एकदिन मेरी खिंचाई करते हुए उसने कहा
ये क्या भदेस-भदेस लगाए रखते हो
सीखने की अनिच्छा को क्यों छिपाते हो
अपने देहातीपन से
क्यों खुद को करते हो इस तरह प्रोजेक्ट जैसे
सब शहरी होते है मतलबी,औपचारिक और संवदेनहीन
एक तुम ही हो सबसे निर्मल और आत्मीय
मैं सकते में आ गया ये सुनकर
नही था उसकी बातों का मेरे पास कोई जवाब
तभी छींक आ गई मुझे
उसने अपने रुमाल देते हुए कहा
लो भदेस आदमी रुमाल तो रखता नही
नाक पौंछते हुए हंस पड़ा मैं
हाईजीन कांशियस भी नही होता भदेस मैंने कहा
हां ! मगर इमेज कांशियस बहुत होता है
जानता है संकोचों को ग्लैमराइज़्ड करना
इतना कहकर हंस पड़ी वो
फिर देर तक हंसता रहा मेरा भदेसपन
सीसीडी में बैठकर।
***
अचानक उसने पूछा
आदमी मरने के बाद कहाँ जाता होगा
मैंने कहा
ये तो मरकर ही बताया जा सकता है
तो ये बात पहले मै बताना चाहूँगी
तुम सुनना हमेशा की तरह चुपचाप
मैंने कहा
मौत किसी के हाथ में नही
इसलिए ये अनुबंध बेकार है
उसने कहा
जिंदगी तो है हाथ में
चलो यही बतातें है जी कर कहाँ जाता है आदमी
मैंने कहा हां बताओं !
हंसते हुए वो बोली
फिलहाल तो तुम्हारी पनाह में
बाद का पता नही
ठीक उस वक्त उसकी आँखों में देख पाया मैं
अंतिम अरण्य का एक स्पष्ट मानचित्र।

© डॉ.अजित