कुछ सवालों के जवाब
इसी जन्म में पूछे जाने चाहिए ईश्वर से
नही कर देना चाहिए उसे दोषमुक्त
प्रारब्ध के नाम पर
क्यों मर जाता है वो पिता
जिसकी जरूरत सबसे अधिक उसके बच्चों को है?
क्यों पराजित होता जाता है
एक सीधा सच्चा इंसान हमेशा
रोटी पर पहला हक क्यों नही उसका
जिसका सबसे ज्यादा पसीना शामिल है उसमें
क्यों कुछ लोग तय कर देते है
भीड़ का भविष्य बिना उनकी रायशुमारी के
दुःखो से ऐतराज़ नही
मगर क्यों मिलते है ऐसे अकथनीय दुःख
जिनका कोई उपचार नही
कब तक ईश्वरीय सत्ता के भरोसे
अपने प्रश्न टालता रहेगा
एक मजबूर हैरान परेशान मनुष्य
कब तक धर्म और आध्यात्म के नाम पर
गलत ठहरा दिया जाएगा
उसके बेहद बुनियादी और जरूरी सवालों को
कैसा लगता होगा उस दयालु ईश्वर को
जब मनुष्य को देखता होगा बेबस और मजबूर
यदि वो न्याय कर रहा पूर्वजन्मों के कर्मो से
तो
इस जन्म में मैं खारिज़ करता हूँ
ईश्वर का दयालु होना
ईश्वर दयालु नही बेहद चालाक है
वो हमेशा छोड़ना चाहता
उसको पूजने के कारण
भले ही इसके बदले
घुटकर मर जाए
एक सीधा सच्चा आदमी बेवजह
ईश्वर पर सवाल खड़े करने के लिए
भले दण्डित किया जाए मुझे
मगर बतौर इंसान मुझे ईश्वर का चरित्र लगता है
हमेशा संदिग्ध
उसका न्याय का दर्शन नही आता समझ
खोखली लगती है आस्था की तकरीरे
कई बार ईश्वर लगता है
मनुष्य से ज्यादा मजबूर और असुरक्षा से घिरा
मनुष्य के कष्ट
उसके शाश्वत बने रहने का
एक मात्र उपाय है।
© डॉ.अजित
इसी जन्म में पूछे जाने चाहिए ईश्वर से
नही कर देना चाहिए उसे दोषमुक्त
प्रारब्ध के नाम पर
क्यों मर जाता है वो पिता
जिसकी जरूरत सबसे अधिक उसके बच्चों को है?
क्यों पराजित होता जाता है
एक सीधा सच्चा इंसान हमेशा
रोटी पर पहला हक क्यों नही उसका
जिसका सबसे ज्यादा पसीना शामिल है उसमें
क्यों कुछ लोग तय कर देते है
भीड़ का भविष्य बिना उनकी रायशुमारी के
दुःखो से ऐतराज़ नही
मगर क्यों मिलते है ऐसे अकथनीय दुःख
जिनका कोई उपचार नही
कब तक ईश्वरीय सत्ता के भरोसे
अपने प्रश्न टालता रहेगा
एक मजबूर हैरान परेशान मनुष्य
कब तक धर्म और आध्यात्म के नाम पर
गलत ठहरा दिया जाएगा
उसके बेहद बुनियादी और जरूरी सवालों को
कैसा लगता होगा उस दयालु ईश्वर को
जब मनुष्य को देखता होगा बेबस और मजबूर
यदि वो न्याय कर रहा पूर्वजन्मों के कर्मो से
तो
इस जन्म में मैं खारिज़ करता हूँ
ईश्वर का दयालु होना
ईश्वर दयालु नही बेहद चालाक है
वो हमेशा छोड़ना चाहता
उसको पूजने के कारण
भले ही इसके बदले
घुटकर मर जाए
एक सीधा सच्चा आदमी बेवजह
ईश्वर पर सवाल खड़े करने के लिए
भले दण्डित किया जाए मुझे
मगर बतौर इंसान मुझे ईश्वर का चरित्र लगता है
हमेशा संदिग्ध
उसका न्याय का दर्शन नही आता समझ
खोखली लगती है आस्था की तकरीरे
कई बार ईश्वर लगता है
मनुष्य से ज्यादा मजबूर और असुरक्षा से घिरा
मनुष्य के कष्ट
उसके शाश्वत बने रहने का
एक मात्र उपाय है।
© डॉ.अजित
1 comment:
सोचनीय।
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