अस्पताल की कविताएँ
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तुम्हारे दाएं हाथ में कैनूला लगा है
मैं उसकी लम्बी सुईं को देखता हूँ
जिस जगह कैनूला लगा है
आसपास नसें दुबक गई है इसके दबाव से
तमाम तकलीफ के बावजूद
तुम्हारा हाथ खूबसूरत लग रहा है
दर्द में ख़ूबसूरती तलाशना मेरी आदत नही वैसे
यह कैनूला तुम्हारे हाथ पर टंका है
किसी पहाड़ी फूल सा
मैंने जब तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लिया
इसने किया कुछ इस तरह से ऐतराज़
जैसे इसे मुझसे ज्याद फ़िक्र हो तुम्हारी.
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वातानुकूलित कक्ष
दीवार पर टंगा एलसीडी
और एक साफ सुथरा कमरा है
फिर भी मैं पलटता रहता हूँ रिपोर्ट्स
उकता कर बंद कर देता हूँ टीवी
तुम्हारी आँख लगी है अभी
सोते हुए देखकर लगता नही तुम बीमार हो
तुम बीमार हो ये सोचकर
नींद नही आती मुझे.
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मेडिकल की भाषा में यह फ्लूड है
गाँव की भाषा में मैं इसे ग्लूकोज़ कहता हूँ
टप-टप ये बहता है आसमान से जमीन की और
और इन दोनों के बीच तुम लेटी हो
बीच-बीच में यह डरा देता है
जैसे कि बंद हो गया हो इस प्रवाह
मैं चाहता हूँ ये बोतल आखिरी हो
मेरे चाहने से कुछ नही होता
यदि कुछ होता तो तुम यहाँ क्यों होती भला
ग्लूकोज़ को मैं कहता हूँ धन्यवाद
तुम्हारी तरफ से
फ्लूड नही देता कोई जवाब.
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हर घण्टे बाद
तुम्हारा तापमान नापना है मुझे
ये काम वैसे नर्स का था
मगर मैंने उत्साह से नर्स को मना कर दिया
हर आधें घण्टे में
तुम्हारे माथे पर हाथ फेरता हूँ मैं
ताकि कम हो सके आने वाले गणना
ये कोई दवा नही है
ये दुआ भी नही है
ये बस मेरा अन्धविश्वासी मन है
जिसे नर्स से ज्यादा खुद पर भरोसा है.
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बीमारी में
जब आधी गाल से तुम मुस्कुराती हो
अच्छी लगती हो
मेरी हर लम्बी आह पर
ये मुस्कान बरबस निकलती है
इस तरह हम दोनों
विदा करते है
अपने भारी भरकम दुःख को.
© डॉ. अजित
3 comments:
बहुत सुन्दर।
आदरणीय पहली बार आपकी रचनायें पढ़ी मन भाव -विभोर हो गया बहुत सुन्दर ! आभार ''एकलव्य"
waah bahut badhiya rachna hospital ko kavita me bahut khoob
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