लगातार
विजय के कारण
मैं
अब थकने लगा हूँ
अब
मैं हारना चाहता हूँ
सहमत
लोगो से मैं
उकता
गया हूँ
मुझे
स्थायी तौर पर
कुछ
असहमत दोस्त चाहिए
जो
बता सके मेरे गलती
मेरी
आँखों में आँखें डालकर
मैं
कुछ दिन भीड़ की बीच रहना चाहता हूँ
जहां
कुछ इस तरह का एकांत हो कि
कोई
किसी को न जानता हो आपस में
मैं
मरने से पहले
जीने
का पता चाहता हूँ
ताकि
उसके गले मिलकर
कह
सकूं धन्यवाद
अब
मैं दुखों पर कोई निजी बात
नही
करना चाहता हूँ
अब
मैं बस इतना चाहता हूँ कि
मैं
क्या चाहता हूँ
ये
किसी को बताना या समझाना न पड़े
ये
थोड़ी मासूम सी चाहत है
इसलिए
मैं इसे रखने के लिए
वो
दिल तलाश रहा हूँ
जो
न भरा हो और ना खाली ही हो
हो
सके तो
वापसी
की उम्मीद के बिना
फ़िलहाल
सच्ची
शुभकमनाएं दीजिए मुझे.
©
डॉ. अजित
3 comments:
शुभकामनाएं कर लीजिये । कुछ अलग है आपका अन्दाजे बयाँ । शुभकामनाएं।
सुन्दर भावनाओं से ओत -प्रोत ,हृदय की बात धीमे से कहती आपकी रचना हृदय को स्पर्श करती हुई। आभार ,"एकलव्य"
waah ati sundar
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