Tuesday, August 22, 2017

व्याकरण

स्त्री में मात्रा बड़ी ई की थी
मगर उन्हें समझा जाता रहा
हमेशा कमजोर और छोटा

बड़ी ई होने के बावजूद
स्त्री की ध्वनि को बनाया गया
स्थायी तौर पर कमजोरी का प्रतीक

व्याकरण के आचार्यों को भी
नही रहा होगा इस बात का अनुमान
कि शब्दानुशासन में भी
पुरुष तलाश लेगा
अह्म और गर्व
सत्ता और अधिकार

स्त्री में भले ही बड़ी ई की मात्रा लगती है
मगर बाद में यह मात्रा भी अर्थ खो बैठी
ई की बड़ी और छोटी मात्रा को बना दिया गया
स्त्रीवाचक संज्ञा का बोझिल सौदंर्य

ध्वनियों में समा गया लिंग का गहरा भेद
शब्दों को यूं कमजोर पड़ते देख
किसी को खराब नही लगा
हो सकता है ना भी गया इस तरफ
किसी का ध्यान

मात्राओं की दुनिया से लेकर
हकीकत की दुनिया में
भांति-भांति के
भेद झेलती स्त्री
नही रच सकी
अपना एक ऐसा व्याकरण

जिसमें उत्तम पुरुष की तरह होती
एक उत्तम स्त्री
और मध्यम पुरुष की होती
एक मध्यम स्त्री।

©डॉ. अजित

1 comment:

Onkar said...

वाह, सटीक रचना