मैं
एक ऐसे मनुष्य के प्रेम हूँ
जो
दिन को दिन
रात
को रात कहता है
हालांकि
ये बात
एक
गीत के उस मुखड़े के खिलाफ जाती है
जिसमें
प्रेमी कहता है
‘जो
तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे’
हमारे
प्रेम में है न्यूनतम सहमतियाँ
अधिकतम
प्रेम का भी कोई दावा नहीं है मेरा
मगर
जितना प्रेम है वो पर्याप्त है
एक
दूसरे के आंसू समेटने के लिए
लड़ाई
और प्यार का अनुपात
हमेशा
से असंतुलित रहा है हमारा
मगर
फिर भी हर बार बच जाता है
रूठने
मनाने लायक प्यार
और
व्यंग्य रहित लड़ाई के लिए गुस्सा
मैं
इन दिनों विरोधाभासों के प्रेम में हूँ
इसलिए
मेड फॉर इच अदर जैसे आप्त वचन में
कोई
दिलचस्पी नही है मेरी
हम
जिस पल में होते है साथ
उस
पल का दिया जा सकता है उदाहरण
मैं इन दिनों एक ऐसे मनुष्य के प्रेम हूँ
जो
एक बेहतर मनुष्य बना रहा है मुझे
और
उसे थोड़ा बिगाड़ रहा हूँ मैं
हमारी
इस जुगलबन्दी पर
वो
भी हंस पड़ता है
जिसका
हाल ही में हुआ है ब्रेकअप
मैं
एक ऐसे मनुष्य के प्रेम में हूँ
जो
मात्र मेरे प्रेम में नही है
इस
बात पर मैं खुश हो सकता हूँ
हंस
सकता हूँ जोर-जोर से
जब
आप कहें
‘ये
भी कोई प्रेम हुआ भला’?
©
डॉ. अजित
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