हालांकि
बतौर मनुष्य
ये
जीवन बेहद छोटा और नाकाफी है
मगर
फिर भी
जिनका
भी हुआ है तिरस्कार
मैंने
उन्हें लगे लगाना चाहता हूँ
एकबार
कद,रंग,भाषा
,लिंग के कारण
जिसने
भी झेली हो जिल्लत
मैं
उसके कान में कहना चाहता हूँ
दुनिया
की सबसे खूबसूरत बात
मेरी
रूचि उनकी मुस्कान में नही
उनकी
थकान में है
मैं
तोलना चाहता हूँ
उनके
कन्धों पर टिका
लोक
की अपेक्षा का बोझ
मैं
सुनना चाहता हूँ
उनके
एकांत की दहाड़
मैं
संकलित करना चाहता हूँ
उनकी
आत्मसांत्वनाएं
ताकि
हारे हुए मनुष्य पढ़ सके उसे
किसी
उपनिषद की तरह
जिन
लोगों ने झेला है अपमान,भेद और उपेक्षा
उनके
हाथों की रेखाएं बांचना चाहता हूँ एकबार
देखना
चाहता हूँ
हाशिए
पर खिसकी भाग्यरेखा को
किस
तरह देखती है हृदय और मस्तिष्क रेखा
मुझे
ठीक से पता है यह बात
ऐसे
लोग नही है मेरी प्रतीक्षा में
वो
आदी हो गए है प्रतीक्षामुक्त जीवन के
मैं
मांगना चाहता हूँ माफी
पूरी
मनुष्य जाति की तरफ से
भाषा
की सायास/अनायास हिंसा के लिए
मुझे
उम्मीद है
अंतत:
दुनिया भर के अपमानित
और
आहत हृदय कर देंगे
हमें
माफ़
उम्मीदों
की हत्या करके
उम्मीद
रखने वाले समूह का
मैं
अधिकृत प्रतिनिधि हूँ
इसलिए
आखिर में बात कर दी है
खत्म
माफी पर
जैसे
दुनिया के हर अपराध का
सबसे
सुविधाजनक समाधान हो
माफ़ी
माँगना
और
माफ़ कर देना.
©
डॉ. अजित
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