Wednesday, March 21, 2018

चाहत

मैं चाहता हूँ
तुम पढ़ों  यह बात
एकांत में
सीने से लगाकर

जैसे कोई पढ़ता है
पहले प्रेम का पहला खत
अपनी अधीरता के साथ

कि
प्रेम जब रीत जाता है
तब वो खाली जगह नही छोड़ता है
वो छोड़ता है
एक खाली आकाश

जिसमें उड़ते हुए
कोई तय नही कर पाता है कि
उसे उतरना कहाँ पर है?

मैं भी उड़ता हुआ निकल आया हूँ
इतनी दूर
धरती पर नही मिलेगी मेरी परछाई

मैं चाहता हूँ  जब तुम पढ़ों यह बात
थोड़ी देर के लिए खिड़की पर टिका दो
अपनी कोहनी
और मुस्कुराओ
देखते हुए आकाश

तुम ही न कहती थी
जब कोई धीरे-धीरे आँखों से होता है ओझल
उसकी तस्वीर खींच लेता है आसमान

बस इस तरह से
अंतिम बार तुम्हें नजर आना चाहता हूँ मैं.

©डॉ.अजित