मैं चाहता हूँ
तुम पढ़ों यह बात
एकांत में
सीने से लगाकर
जैसे कोई पढ़ता है
पहले प्रेम का पहला खत
अपनी अधीरता के साथ
कि
प्रेम जब रीत जाता है
तब वो खाली जगह नही छोड़ता है
वो छोड़ता है
एक खाली आकाश
जिसमें उड़ते हुए
कोई तय नही कर पाता है कि
उसे उतरना कहाँ पर है?
मैं भी उड़ता हुआ निकल आया हूँ
इतनी दूर
धरती पर नही मिलेगी मेरी परछाई
मैं चाहता हूँ जब तुम पढ़ों यह बात
थोड़ी देर के लिए खिड़की पर टिका दो
अपनी कोहनी
और मुस्कुराओ
देखते हुए आकाश
तुम ही न कहती थी
जब कोई धीरे-धीरे आँखों से होता है ओझल
उसकी तस्वीर खींच लेता है आसमान
बस इस तरह से
अंतिम बार तुम्हें नजर आना चाहता हूँ मैं.
©डॉ.अजित
तुम पढ़ों यह बात
एकांत में
सीने से लगाकर
जैसे कोई पढ़ता है
पहले प्रेम का पहला खत
अपनी अधीरता के साथ
कि
प्रेम जब रीत जाता है
तब वो खाली जगह नही छोड़ता है
वो छोड़ता है
एक खाली आकाश
जिसमें उड़ते हुए
कोई तय नही कर पाता है कि
उसे उतरना कहाँ पर है?
मैं भी उड़ता हुआ निकल आया हूँ
इतनी दूर
धरती पर नही मिलेगी मेरी परछाई
मैं चाहता हूँ जब तुम पढ़ों यह बात
थोड़ी देर के लिए खिड़की पर टिका दो
अपनी कोहनी
और मुस्कुराओ
देखते हुए आकाश
तुम ही न कहती थी
जब कोई धीरे-धीरे आँखों से होता है ओझल
उसकी तस्वीर खींच लेता है आसमान
बस इस तरह से
अंतिम बार तुम्हें नजर आना चाहता हूँ मैं.
©डॉ.अजित
2 comments:
सुन्दर
लाज़वाब
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